पाइल्स
(बवासीर,
अर्श)……..
Piles
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, पित, कफ़ ये तीनो दोष त्वचा, मांस, मेदा को दूषित करके गुदा के अंदर और बाहरी स्थानों मैं मांस के अंकुर (मस्से/फफोले) तैयार करते हैं.
इन्ही मांस के अंकुरों को बवासीर या अर्श कहते हैं ! ये मांस के अंकुर गुदामार्ग का अवरोध करते हैं और मलत्याग के समय शत्रु की भांति पीड़ा करते हैं ! इसलिए इनको अर्श भी कहा जाता है. ( चरक)
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, पित, कफ़ ये तीनो दोष त्वचा, मांस, मेदा को दूषित करके गुदा के अंदर और बाहरी स्थानों मैं मांस के अंकुर (मस्से/फफोले) तैयार करते हैं.
इन्ही मांस के अंकुरों को बवासीर या अर्श कहते हैं ! ये मांस के अंकुर गुदामार्ग का अवरोध करते हैं और मलत्याग के समय शत्रु की भांति पीड़ा करते हैं ! इसलिए इनको अर्श भी कहा जाता है. ( चरक)
बाहरी
लक्षणों के कारण भेद***********************
बवासीर 2 प्रकार (kind of piles) की होती हैं।
1) भीतरी(खूनी) बवासीर
2) बाहरी (बादी) बवासीर।
बवासीर 2 प्रकार (kind of piles) की होती हैं।
1) भीतरी(खूनी) बवासीर
2) बाहरी (बादी) बवासीर।
भीतरी
/ ख़ूनी बवासीर / आन्तरिक / रक्तभ स्रावी अर्श / रक्तार्श……….
ख़ूनी बवासीर में मलाशय की आकुंचक पेशी के अन्दर अर्श होता है तो वह म्युकस मेम्ब्रेन (Mucous Membrane) से ढका रहता है। ख़ूनी बवासीर में किसी प्रक़ार की तकलीफ नहीं होती है केवल ख़ून आता है। पहले मल में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिर्फ़ ख़ून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। मलत्याग के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आख़िरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नहीं जाता है।
भीतरी बवासीर हमेशा धमनियों और शिराओं के समूह को प्रभावित करती है। फैले हुए रक्त को ले जाने वाली नसें जमा होकर रक्त की मात्रा के आधार पर फैलती हैं तथा सिकुड़ती है। इस रोग में गुदा की भीतरी दीवार में मौजूद ख़ून की नसें सूजने के कारण तनकर फूल जाती हैं। इससे उनमें कमज़ोरी आ जाती है और मल त्याग के वक़्त ज़ोर लगाने से या कड़े मल के रगड़ खाने से ख़ून की नसों में दरार पड़ जाती हैं और उसमें से ख़ून बहने लगता है। इस बवासीर के कारण मस्सों से ख़ून निकलने लगता है। यह बहुत भयानक रोग है, क्योंकि इसमें पीड़ा तो होती ही है साथ में शरीर का ख़ून भी व्यर्थ नष्ट होता है।
ख़ूनी बवासीर में मलाशय की आकुंचक पेशी के अन्दर अर्श होता है तो वह म्युकस मेम्ब्रेन (Mucous Membrane) से ढका रहता है। ख़ूनी बवासीर में किसी प्रक़ार की तकलीफ नहीं होती है केवल ख़ून आता है। पहले मल में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिर्फ़ ख़ून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। मलत्याग के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आख़िरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नहीं जाता है।
भीतरी बवासीर हमेशा धमनियों और शिराओं के समूह को प्रभावित करती है। फैले हुए रक्त को ले जाने वाली नसें जमा होकर रक्त की मात्रा के आधार पर फैलती हैं तथा सिकुड़ती है। इस रोग में गुदा की भीतरी दीवार में मौजूद ख़ून की नसें सूजने के कारण तनकर फूल जाती हैं। इससे उनमें कमज़ोरी आ जाती है और मल त्याग के वक़्त ज़ोर लगाने से या कड़े मल के रगड़ खाने से ख़ून की नसों में दरार पड़ जाती हैं और उसमें से ख़ून बहने लगता है। इस बवासीर के कारण मस्सों से ख़ून निकलने लगता है। यह बहुत भयानक रोग है, क्योंकि इसमें पीड़ा तो होती ही है साथ में शरीर का ख़ून भी व्यर्थ नष्ट होता है।
बाहरी
/ बादी बवासीर / अरक्तह स्रावी या ब्राह्य अर्श……………
बादी बवासीर रहने पर पेट ख़राब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। इसमें जलन, दर्द, खुजली, शरीर मै बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। मल कडा होने पर इसमें ख़ून भी आता है। इसमें मस्सा अन्दर होने की वजह से मल का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है उसे फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीडा होती है।
बादी बवासीर रहने पर पेट ख़राब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। इसमें जलन, दर्द, खुजली, शरीर मै बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। मल कडा होने पर इसमें ख़ून भी आता है। इसमें मस्सा अन्दर होने की वजह से मल का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है उसे फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीडा होती है।
बवासीर
के भेद/प्रकार………..
जन्म के बाद हमारे शारीरिक त्रिदोषों के कारण बवासीर के छः भेद हैं ! जिनमे
१. तीनो दोषों (वात, पित,कफ़) से अलग -२ से तीन प्रकार की होती है!
२. सहज (जन्म) से एक !
३. त्रिदोष दोषों से एक !
४. रक्त दोष से एक !
जन्म के बाद हमारे शारीरिक त्रिदोषों के कारण बवासीर के छः भेद हैं ! जिनमे
१. तीनो दोषों (वात, पित,कफ़) से अलग -२ से तीन प्रकार की होती है!
२. सहज (जन्म) से एक !
३. त्रिदोष दोषों से एक !
४. रक्त दोष से एक !
वातअर्श : वात से उत्पन्न अर्श के मांस अंकुर शुष्क, चिम्चिमाह्ट वाले, मुरझाये हुए, श्वेत, लाल और छोटे- बड़े, उप्पेर नीचे, और तीरछे होते हैं.
इनका
आकार कंदूरी,
बेर.
खर्जूर के फुल के सम्मान होता है! और रोगी रुक-२ कर बहुत मुश्किल से बंधा
हुआ मॉल त्याग करता है !
पित अर्श: पित प्रधान अर्श मैं मांस के अंकुर नीले मुख के, लाल, पीले, या
कालिख
लिए होते हैं.
इनसे, स्वच्छ, पतला, रक्त (ब्लड) बहता है !
और
दुर्गन्ध
भी आती है! ये मांस के अंकुर ढीले, पतले, कोमल, तोते की जीभ, जोंन्क (लीच) के मुख
के समान होते हैं ! रोगी पतला, नीला, गर्म, पीला या
रक्त
और आम से युक्त मॉल त्याग करता है ! मल त्याग के समय असहनीय पीड़ा होती
है
!
#कफ़ अर्श: काफ प्रधान बवासीर के मन्न्स अंकुर मूल से मोटे, स्थूल, मंद पीड़ा वाले और श्वेत (वाइट) रंग के होते हैं ! लम्बे, नर्म, गोल, बड़े, चिकने होते हैं और छूने से सुख का अनुभव कराने वाले होते हैं ! इनका आकार करीर या कटहल के बीज या गाये के स्तन के समान होता है! रोगी बसा की भांति कफ़युक्त और बहुत कम मात्र मैं मल का त्याग करता है ! थोडा पित मैं मरोड़ के साथ मल आता है. ये मांस अंकुर/ मस्से न बहते हैं न फूटते हैं.
#कफ़ अर्श: काफ प्रधान बवासीर के मन्न्स अंकुर मूल से मोटे, स्थूल, मंद पीड़ा वाले और श्वेत (वाइट) रंग के होते हैं ! लम्बे, नर्म, गोल, बड़े, चिकने होते हैं और छूने से सुख का अनुभव कराने वाले होते हैं ! इनका आकार करीर या कटहल के बीज या गाये के स्तन के समान होता है! रोगी बसा की भांति कफ़युक्त और बहुत कम मात्र मैं मल का त्याग करता है ! थोडा पित मैं मरोड़ के साथ मल आता है. ये मांस अंकुर/ मस्से न बहते हैं न फूटते हैं.
#त्रिदोष और सहज अर्श : तीनो दोषों के मिश्रण से उत्पन्न बवासीर
के मांस अंकुर उपर लिखित तीनो दोषों से युक्त लक्षण वाले होते हैं!
#रक्त दोष अर्श : रक्त की अधिकता वाले मांस अंकुर पित से उत्पन
अर्श अंकुरों के
समान
होते है !बरगद के अंकुर,
गुंजा
या प्रवाल की तरह ये अंकुर होते हैं! मल त्याग के समय इन मांस अंकुरों से बहुत
दूषित और गर्म रक्त (खून) एकदम से बहने लगता है!
इस
रक्त के ज्यादा बहने से रोगी कमजोरी महसूस करता है !
पाइल्स
की उत्पति के कारण…………………
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पाइल्स या बवासीर को आधुनिक सभ्यता का विकार कहें तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। खाने पीने मे अनिमियता, जंक फ़ूड का बढता हुआ चलन और व्यायाम का घटता महत्त्व, लेकिन और भी कई कारण हैं बवासीर के रोगियों के बढने में।पाइल्स होने के मुख्या कारण निम्नलिखित हैं -
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पाइल्स या बवासीर को आधुनिक सभ्यता का विकार कहें तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। खाने पीने मे अनिमियता, जंक फ़ूड का बढता हुआ चलन और व्यायाम का घटता महत्त्व, लेकिन और भी कई कारण हैं बवासीर के रोगियों के बढने में।पाइल्स होने के मुख्या कारण निम्नलिखित हैं -
#कब्ज ..बवासीर रोग होने का मुख्य कारण पेट में
कब्ज बनना है। दीर्घकालीन कब्ज बवासीर की जड़ है। 50 से भी अधिक प्रतिशत
व्यक्तियों को यह रोग कब्ज के कारण ही होता है। सुबह-शाम शौच न जाने या
शौच जाने पर ठीक से पेट साफ़ न होने और काफ़ी देर तक शौचालय में बैठने
के बाद मल निकलने या ज़ोर लगाने पर मल निकलने या जुलाब लेने पर मल निकलने की
स्थिति को कब्ज होना कहते हैं। इसलिए जरूरी है कि कब्ज होने को रोकने के
उपायों को हमेशा अपने दिमाग में रखें। कब्ज की वजह से मल सूखा और कठोर हो
जाता है जिसकी वजह से उसका निकास आसानी से नहीं हो पाता। मलत्याग के वक़्त
रोगी को काफ़ी वक़्त तक पखाने में उकडू बैठे रहना पड़ता है, जिससे रक्त वाहनियों
पर ज़ोर पड़ता है और वह फूलकर लटक जाती हैं। कब्ज के कारण मलाशय की नसों के रक्त
प्रवाह में बाधा
पड़ती
है जिसके कारण वहां की नसें कमज़ोर हो जाती हैं और आन्तों के नीचे के
हिस्से
में भोजन के अवशोषित अंश अथवा मल के दबाव से वहां की धमनियां चपटी
हो
जाती हैं तथा झिल्लियां फैल जाती हैं। जिसके कारण व्यक्ति को बवासीर हो
जाती
है।
यह रोग व्यक्ति को तब भी हो सकता है जब वह शौच के वेग को किसी प्रकार से रोकता है।
भोजन में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होने के कारण बिना पचा हुआ भोजन का अवशिष्ट अंश मलाशय में इकट्ठा हो जाता है और निकलता नहीं है, जिसके कारण मलाशय की नसों पर दबाव पड़ने लगता हैं और व्यक्ति को बवासीर हो जाती है।
#गरिष्ठ भोजन - अत्यधिक मिर्च, मसाला, तली हुई चटपटी चीज़ें, मांस, अंडा, रबड़ी, मिठाई, मलाई, अति गरिष्ठ तथा उत्तेजक भोजन करने के कारण भी बवासीर रोग हो सकता है।
#अधिक भोजन - अतिभोजन अर्श रोग मूल कारणम् अर्थात् आवश्यकता से अधिक भोजन करना बवासीर का प्रमुख कारण है।
#शौच करने के बाद मलद्वार को गर्म पानी से धोने या अछि तरह से ना धोने से भी बवासीर रोग हो सकता है।
#दवाईयों का अधिक सेवन करने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो सकता है। डिस्पेपसिया और किसी जुलाब की गोली का अधिक दिनॊ तक सेवन करना।
रात के समय में अधिक जगना भी बवासीर का के होने का एक मुख्या कारण है | रात को जागने से शरीर की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है और कब्ज को पैदा करती है|
कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। अतः अनुवांशिकता इस रोग का एक कारण हो सकता है।
`जिन व्यक्तियों को अपने रोज़गार की वजह से घंटों खड़े रहना पड़ता हो, जैसे बस कंडक्टर, ट्रॉफिक पुलिस, पोस्टमैन या जिन्हें भारी वजन उठाने पड़ते हों,- जैसे कुली, मजदूर, भारोत्तलक वगैरह, उनमें इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है।
#बवासीर गुदा के कैंसर की वजह से या मूत्र मार्ग में रूकावट की वजह से या गर्भावस्था में भी हो सकता है। गर्भावस्था मे भ्रूण का दबाब पडने से स्त्रियों में यह रोग अकसर हो जाता है |
#बवासीर मतलब पाइल्स यह रोग बढ़ती उम्र के साथ जिनकी जीवनचर्या बिगड़ी हुई हो, उनको होता है। सुबह देर से उठना, रात को देर से सोना और समय पर भोजन न करना, जैसे अव्यब्स्थित दिनचर्या इसका मुख्या कारण है|
यकृत :- पाचन संस्थान का यकृत सर्वप्रधान अंग है। इसके भीतर तथा यकृत धमनी आदि में पोर्टल सिस्टम रक्तय की अधिकता होकर यह रोगित्पन्नृ होता है। जैसे – सिरोसिस आफ़ लिवर।
हृदय की कुछ बीमारियाँ।
उदरामय - निरन्तर तथा तेज उदरामय निश्चिैत रूप से बवासीर उत्पन्नि करता है।
मद्यपान एवं अन्य नशीले पदार्थों का सेवन – अत्यधिक शराब, ताड़ी, भांग, गांजा, अफीम आदि के सेवन से बवासीर होता है।
चाय एवं धूम्रपान - अधिकाधिक चाय, कॉफी आदि पीने तथा दिन रात धूम्रपान करने से अर्शोत्पत्ति होती है।
पेशाब संस्थान - मूत्राशय की गड़बड़ी, पौरुष ग्रन्थि की वृद्धि, मूत्र पथरी आदि रोग में पेशाब करते समय ज़्यादा ज़ोर लगाने के कारण” भी यह रोग होता है। मल त्याग के समय या मूत्र नली की बीमारी मे पेशाब करते समय काँखना।
शारीरिक परिश्रम का अभाव - जो लोग दिन भर आराम से बैठे रहते हैं और शारीरिक श्रम नहीं करते उन्हें यह रोग हो जाता है।
यह रोग व्यक्ति को तब भी हो सकता है जब वह शौच के वेग को किसी प्रकार से रोकता है।
भोजन में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होने के कारण बिना पचा हुआ भोजन का अवशिष्ट अंश मलाशय में इकट्ठा हो जाता है और निकलता नहीं है, जिसके कारण मलाशय की नसों पर दबाव पड़ने लगता हैं और व्यक्ति को बवासीर हो जाती है।
#गरिष्ठ भोजन - अत्यधिक मिर्च, मसाला, तली हुई चटपटी चीज़ें, मांस, अंडा, रबड़ी, मिठाई, मलाई, अति गरिष्ठ तथा उत्तेजक भोजन करने के कारण भी बवासीर रोग हो सकता है।
#अधिक भोजन - अतिभोजन अर्श रोग मूल कारणम् अर्थात् आवश्यकता से अधिक भोजन करना बवासीर का प्रमुख कारण है।
#शौच करने के बाद मलद्वार को गर्म पानी से धोने या अछि तरह से ना धोने से भी बवासीर रोग हो सकता है।
#दवाईयों का अधिक सेवन करने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो सकता है। डिस्पेपसिया और किसी जुलाब की गोली का अधिक दिनॊ तक सेवन करना।
रात के समय में अधिक जगना भी बवासीर का के होने का एक मुख्या कारण है | रात को जागने से शरीर की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है और कब्ज को पैदा करती है|
कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। अतः अनुवांशिकता इस रोग का एक कारण हो सकता है।
`जिन व्यक्तियों को अपने रोज़गार की वजह से घंटों खड़े रहना पड़ता हो, जैसे बस कंडक्टर, ट्रॉफिक पुलिस, पोस्टमैन या जिन्हें भारी वजन उठाने पड़ते हों,- जैसे कुली, मजदूर, भारोत्तलक वगैरह, उनमें इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है।
#बवासीर गुदा के कैंसर की वजह से या मूत्र मार्ग में रूकावट की वजह से या गर्भावस्था में भी हो सकता है। गर्भावस्था मे भ्रूण का दबाब पडने से स्त्रियों में यह रोग अकसर हो जाता है |
#बवासीर मतलब पाइल्स यह रोग बढ़ती उम्र के साथ जिनकी जीवनचर्या बिगड़ी हुई हो, उनको होता है। सुबह देर से उठना, रात को देर से सोना और समय पर भोजन न करना, जैसे अव्यब्स्थित दिनचर्या इसका मुख्या कारण है|
यकृत :- पाचन संस्थान का यकृत सर्वप्रधान अंग है। इसके भीतर तथा यकृत धमनी आदि में पोर्टल सिस्टम रक्तय की अधिकता होकर यह रोगित्पन्नृ होता है। जैसे – सिरोसिस आफ़ लिवर।
हृदय की कुछ बीमारियाँ।
उदरामय - निरन्तर तथा तेज उदरामय निश्चिैत रूप से बवासीर उत्पन्नि करता है।
मद्यपान एवं अन्य नशीले पदार्थों का सेवन – अत्यधिक शराब, ताड़ी, भांग, गांजा, अफीम आदि के सेवन से बवासीर होता है।
चाय एवं धूम्रपान - अधिकाधिक चाय, कॉफी आदि पीने तथा दिन रात धूम्रपान करने से अर्शोत्पत्ति होती है।
पेशाब संस्थान - मूत्राशय की गड़बड़ी, पौरुष ग्रन्थि की वृद्धि, मूत्र पथरी आदि रोग में पेशाब करते समय ज़्यादा ज़ोर लगाने के कारण” भी यह रोग होता है। मल त्याग के समय या मूत्र नली की बीमारी मे पेशाब करते समय काँखना।
शारीरिक परिश्रम का अभाव - जो लोग दिन भर आराम से बैठे रहते हैं और शारीरिक श्रम नहीं करते उन्हें यह रोग हो जाता है।
Consider also taking natural piles supplement
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